झारखंड के विधान सभा चुनाव में जन मुद्दे राजनैतिक चर्चाओं से बाहर

:: न्‍यूज मेल डेस्‍क ::

भाजपा के घोषणा पत्र से यह स्पष्ट झलकता है कि पार्टी पिछले पांच सालों में हुए जन अधिकारों के लगातार हनन को न मानने को तैयार है और न ही उनके निराकरण के लिए कुछ करने को. भाजपा द्वारा NRC लागू करने की बात से पार्टी की गरीब विरोधी और सांप्रदायिक सोच झलकती है.

झारखंड विधान सभा चुनाव पहले चरण के साथ जोर-शोर से शुरू हो गया है. अच्छी संख्या में नागरिक अपने वोट के संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल करने निकले थे. यह चुनाव झारखंड में लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों के रक्षा के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है. पिछले पांच सालों में जन अधिकारों और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर लगातार हमले हुए – CNT-SPT में संशोधन की कोशिश, भूमि अधिग्रहण क़ानून में बदलाव, लैंड बैंक नीति, भूख से हो रही मौतें, भीड़ द्वारा लोगों की हत्या, आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक और महिलाओं के विरुद्ध बढ़ती हिंसा, सरकार द्वारा प्रायोजित संप्रदायिकता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमलें, आदिवासियों के पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था पर प्रहार एवं बढ़ता दमन आदि.

ऐसे महत्त्वपूर्ण चुनाव में, यह समझना अत्यंत आवश्यक है कि राजनैतिक दलों की जन मुद्दों के सवालों पर क्या प्रतिक्रिया है. झारखंड जनाधिकार महासभा, विभिन जन संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मंच, ने लोक सभा व वर्तमान विधान सभा चुनावों के पहले जन मुद्दों पर आधारित मांग पत्र (संलग्न) निर्गत गिया था एवं विपक्षी दलों से जन मुद्दों पर स्पष्ट प्रतिबद्धता दर्शाने की मांग की थी.

महासभा ने राजनैतिक दलों द्वारा विधान सभा चुनाव के लिए निर्गत घोषणा पत्रों का आंकलन किया है (संलग्न). भाजपा के घोषणा पत्र से यह स्पष्ट झलकता है कि पार्टी पिछले पांच सालों में हुए जन अधिकारों के लगातार हनन को न मानने को तैयार है और न ही उनके निराकरण के लिए कुछ करने को. भाजपा द्वारा NRC लागू करने की बात से पार्टी की गरीब विरोधी और सांप्रदायिक सोच झलकती है. आजसू पार्टी के घोषणा पत्र में भी अधिकांश जन मुद्दों पर चुप्पी है. कुछ मुद्दों का ज़िक्र है - जैसे वन अधिकार अधिनियम का कार्यान्वयन, माँब लिंचिंग के विरुद्ध कानून एवं पिछड़ों के लिए आरक्षण.

विपक्षी दलों - कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) और भाकपा (माले) - द्वारा कई जन मुद्दों को घोषणा पत्र में जोड़ने का महासभा स्वागत करती है. लेकिन कांग्रेस, झामुमो और झाविमो के घोषणा पत्रों में अनेक जन मांगों (जो पिछले पांच सालों के समस्याओं पर आधारित थीं) पर चुप्पी है. हालाँकि भाकपा (माले) ने विधान सभा के लिए विस्तृत घोषणा पत्र निर्गत नहीं किया (जैसा लोक सभा चुनाव के लिए किया था), लेकिन उनके संकल्प पत्र में पिछले पांच वर्षों के सभी मूल मुद्दे झलक रहे हैं.

लैंड बैंक नीति के विरुद्ध लोगों द्वारा लगातार विरोध के बावज़ूद, किसी भी दल ने उसे निरस्त करने की बात नहीं की है. कांग्रेस द्वारा जन विरोधी परियोजनाओं जैसे अडानी पावर प्लांट, मंडल डैम व ईचा खरकई डैम को रद्द करने की घोषणा स्वागत योग्य है. लेकिन झामुमो ने केवल इन परियोजनाओं की समीक्षा की बात की है एवं झाविमो ने कुछ घोषणा नहीं की है. आदिवासियों की एक मूल मांग रही है पांचवी अनुसूची प्रावधानों को लागू करना. लेकिन झाविमो के अलावा किसी भी दल ने इसको अपने घोषणा पत्र में शामिल नहीं किया है. वर्तमान डोमिसाइल नीति को रद्द कर आदिवासियों-मूलवासियों के हित में नीति बनाने पर भी किसी भी दल ने स्पष्ट घोषणा नहीं की है.

सभी विपक्षी दलों द्वारा माँब लिंचिंग के विरुद्ध कानून बनाने की घोषणा का महासभा स्वागत करती है. लेकिन गोवंश पशु हत्या निषेध कानून को निरस्त करने की मांग पर सभी दलों में चुप्पी है. यह गौर करने की बात है कि कई लिंचिंग के पीड़ितों पर इस कानून अंतर्गत मामला दर्ज कर उनकी परेशानियाँ को और बढ़ाया गया है एवं इस कानून का सीधा असर मवेशियों के व्यापर पर भी पड़ रहा है. यह दर्शाता है कि विपक्षी दलों की राजनीति में भी धर्मनिरपेक्षता व समानता के मूल्यों के विपरीत धार्मिक बहुसंख्यकवाद की विचारधारा बढ़ती जा रही है. इसका एक और उदहारण है धर्म स्वातंत्र्य कानून को रद्द करने के मांग पर दलों की चुप्पी.

भाजपा द्वारा लगातार विकास के दावों के बीच ही झारखंड में पिछले पांच वर्षों में कम-से-कम 23 भूख से मौतें हो गयीं. लेकिन विपक्षी दलों ने भुखमरी, कुपोषण और कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित होने के मुद्दों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है. केवल कांग्रेस ने जन वितरण प्रणाली अंतर्गत राशन की मात्रा को बढ़ाकर 35 किलों प्रति माह एवं दाल जोड़ने की बात की है. किसी भी दल ने जन वितरण प्रणाली और सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं के कवरेज को बढ़ाने की बात नहीं की है. हालाँकि कुपोषण में झारखंड देश के अव्वल राज्यों में से एक है, किसी भी दल ने मद्ध्यान भोजन और आंगनवाड़ी में मिलने वाले अण्डों की संख्या बढाने की घोषणा नहीं की है. कल्याणकारी योजनाओं को आधार से जोड़ने के कारण व्यापक स्तर पर लोग अपने अधिकारों से वंचित होते हैं लेकिन किसी भी दल ने आधार को योजनाओं से हटाने की बात नहीं की है.

हालांकि पिछले पांच वर्षों में नागरिक अधिकारों पर लगातार हमले हुए है, विपक्षी दलें इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हैं. महासभा लगातार पत्थलगड़ी गावों में हो रहे सरकारी दमन और मानवाधिकारों के उल्लंघनों के विरुद्ध आवाज़ उठाते रही है. हज़ारों अज्ञात लोगों, खास कर के आदिवासियों, पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया है. लेकिन किसी भी दल ने स्पष्ट रूप से देशद्रोह मामलों के क्लोज़र, पुलिस छावनियों को विद्यालयों से हटाए जाने और दोषी अधिकारीयों पर कार्यवाई की घोषणा नहीं की है.

यह चिंताजनक ही कि चुनावी मौसम में, राजनैतिक दलों का ध्यान, जन मुद्दों के बजाए, दुसरे दलों से नेताओं का दल-बदली करवाने पर है. विपक्षी दलों ने अपने घोषणा पत्रों में जो भी जन मुद्दों को शामिल किया है, वे भी उनके चुनावी अभियान के चर्चाओं में नहीं झलक रहे हैं. दूसरी ओर, भाजपा, अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए, राम मंदिर और 370 को मुद्दा बनाके लोगों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है.

झारखंड जनाधिकार महासभा सभी विपक्षी दलों से मांग करती है कि वे धार्मिक ध्रुवीकरण के विरुद्ध स्पष्ट प्रतिबद्धता दर्शाएं और अपनी चुनावी अभियान में जन मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया को लोगों के समक्ष रखे. महासभा राज्य के नागरिकों से अपील करती है कि वोट डालने से पहले जन मुद्दों पर राजनैतिक दलों की प्रतिबद्धता का आंकलन ज़रूर करें. महासभा आशा करती है कि इस बार झारखंड में लोकतंत्र और संविधान के संरक्षण और जन मांगों को पूर्ण करने वाली सरकार बनेगी.

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