पत्थलगड़ी गावों में हुए मानवाधिकार हनन से लगातार मुह फेरती झारखंड सरकार

:: न्‍यूज मेल डेस्‍क ::

6-7 अगस्त 2019 को सामाजिक कार्यकर्ताओं, शोधकर्ताओं, पत्रकार व वकीलों के एक दल ने खूंटी ज़िले के कई पत्थलगड़ी गावों (खूंटी प्रखंड के घाघरा, भंडरा व हाबुईडीह व अर्की प्रखंड के कोचांग व बिरबांकी) का दौरा किया। यह तथ्यान्वेषण झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा आयोजित किया गया था जिसमें कई संगठनों, जैसे आदिवासी अधिकार मंच,  AIPWA, HRLN, झारखंड मुंडा सभा, WSS आदि, ने हिस्सा लिया। महासभा झारखंड के कई जन संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक मंच है।

तथ्यान्वेषण में पाए गए बातों को चर्चा करने के लिए महासभा ने राज्य के मुख्य सचिव श्री डी के तिवारी से कई बार समय माँगा। लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं नहीं मिला। महासभा ने आख़िरकार 9 अक्टूबर 2019 को मुख्य सचिव के कार्यालय में संलग्न अपील (तथ्यान्वेषण रिपोर्ट व संक्षिप्त विवरण के साथ) जमा कर दिया। झारखंड सरकार के सर्वोच्च प्रशासनिक पदाधिकारी के रवैये से यह स्पष्ट है कि सरकार पत्थलगड़ी गावों में हुए व्यापक मानवाधिकार उलन्घनों पर चर्चा नहीं करना चाहती है।

तथ्यान्वेषण दल ने पाया कि पत्थलगड़ी सरकार की आदिवासियों के प्रति कुछ नीतियों के विरुद्ध एक शांतिपूर्वक प्रतिक्रिया हैं। इन नीतियों में मुख्य रूप से शामिल हैं भूमि अधिग्रहण कानूनों में बदलाव की कोशिशें, आदिवसियों के सोच-विचार को समझने और संरक्षण करने में विफलता, ग्राम सभा की सहमती के बिना योजनाओं का कार्यान्वयन, पेसा व पांचवी अनुसूची प्रावधानों को लागू न करना व मानवाधिकारों का घोर उलंघन। पत्थलों पर लिखी अधिकांश संवैधानिक व्याख्याएं शायद गलत या अतिकथन हैं, लेकिन वे लोगों के वास्तविक मुद्दों और मांगों पर आधारित हैं व ग्राम सभा की निर्नायाकता की मूल भावना गलत नहीं है।

दल ने यह भी पाया कि स्थानीय प्रशासन द्वारा पत्थलगड़ी आन्दोलन के विरुद्ध भयानक दमन और हिंसा की गई हैं। कई गावों के आदिवासियों को बेरहमी से पीटा गया है। कुरकि ज़ब्ती के आड़ में कई घरों को तहस-नहस किया है। माल-मवेशियों को क्षति पहुंचाई गयी है। घाघरा गाँव की आश्रिता मुंडा की, जो गर्भवती थी, पुलिस ने घर के अंदर घुसकर डंडे से पिटाई की। आश्रिता ने एक शारीरक रूप से विकलांग बच्चे को जन्म दिया जिसके दोनो पैर अंदर की तरफ मुड़े हुए हैं। पुलिस ने बिना ग्राम सभा की सहमती के सरकारी विद्यालयों व सामुदायिक भवनों में छावनी लगा दी है।  साथ ही, पुलिस ने हजारों आदिवासियों पर राजद्रोह का आरोप लगाकर प्राथमिकी दर्ज की है।  15 प्राथमिकियों के अनुसार, जिसका विश्लेषण फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग टीम से जुड़े अधिवक्ताओं ने किया है, पुलिस ने लगभग 100-150 नामज़ाद लोगों और 14000 अज्ञात लोगों पर कई राजद्रोह समेत कई आरोप दर्ज किए हैं। ऐसा आंकलन है कि कुल 29 प्राथमिकी दर्ज किए गए हैं।

महासभा से मुख्य सचिव से निम्न मांगे की है:

•     खूंटी के हजारों अज्ञात आदिवासियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं पर देशद्रोह के आरोप पर की गई  प्राथमिकियों को तुरंत रद्द किया जाए। जितने नामजाद लोगों पर प्राथमिकी दर्ज की गयी है, उसकी समयबद्ध तरीके से न्यायिक जांच करवाई जाए। किस सबूत के आधार पर इन मामलों को दर्ज किया गया है और जांच में क्या प्रमाण मिलें, सरकार इसे तुरंत सार्वजानिक करे।

•     घाघरा व अन्य गावों में सुरक्षा बलों द्वारा की गई हिंसा की न्यायिक जांच हो और हिंसा के लिए जिम्मेवार पदाधिकारियों पर दंडात्मक कार्यवाई हो। साथ ही, पीड़ित और क्षतिग्रस्त परिवारों को मुआवज़ा दिया जाए।

•     सभी नौ विद्यालयों व दो सामुदायिक भवनों में लगाई गई पुलिस छावनियों को तुरंत हटाया जाए – अदरकी, कोचांग, कुरुँगा, बिरबांकी (अर्की); किताहातु, केवरा (मुर्हू); हूट (खूंटी)

•     सरकार पत्थलगड़ी किए गाँव के लोगों, आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधियों  व संवैधानिक विशेषज्ञों के साथ पत्थलों पर लिखे गए प्रावधानों की व्याख्या पर वार्ता करे।

•     सरकार पांचवी अनुसूची और पेसा के प्रावधानों को पूर्ण रूप से लागू करे।

महासभा पत्थलगाड़ी गावों में सरकार द्वारा किए दमन के विरुद्ध लगातार संघर्ष करते रहेगी। साथ ही, महासभा सभी विपक्षी दलों से आग्रह करती है कि वे खूंटी के आदिवासियों के संघर्ष का साथ दें व राज्य सरकार से जवाब मांगे।

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