जम्मू कश्मीर: पीएम केयर्स फंड से श्रीनगर के अस्पताल को मिले 165 बेकार वेंटिलेटर्स

:: न्‍यूज मेल डेस्‍क ::

नई दिल्ली: विवादित पीएम केयर्स फंड के तहत बांटे गए वेंटिलेटर्स में एक बार फिर से गड़बड़ी का मामले सामने आया है। जम्मू कश्मीर के श्रीनगर स्थित श्री महाराजा हरि सिंह (एसएमएचएस) हॉस्पिटल को फंड से एक 165 वेंटिलेटर्स दिए गए थे, लेकिन इसमें से सबके सब खराब पाए गए हैं।

सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत प्राप्त की गई जानकारी के मुताबिक, अस्पताल प्रशासन ने बताया है कि जब इन वेंटिलेटर्स का टेस्ट किया गया तो ये सही नहीं पाए गए, नतीजतन इससे मरीजों को कोई फायदा नहीं हुआ।

गौर करने योग्य पहलू यह भी है कि केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर ने इन वेंटिलेटर्स की मांग भी नहीं की थी।

जम्मू स्थित कार्यकर्ता बलविंदर सिंह द्वारा आरटीआई एक्ट के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों के मुताबिक, अस्पताल ने कहा कि इसमें से ज्यादातर डिवाइस ‘जरूरी मानक पर खरे नहीं उतरे थे’ और ये वेंटिलेटर अचानक से बंद हो जा रहे थे, जो मरीजों का जीवन खतरे में डालने के समान है।

सिंह ने द वायर  को बताया कि उन्हें कई डॉक्टरों से जानकारी मिली थी कि ‘ये वेंटिलेटर्स किसी काम के नहीं हैं’। हालांकि अस्पताल के लोग उन्हें इस दावे का प्रमाण नहीं दे सके, जिसके बाद उन्होंने इसकी पुष्टि करने के लिए आरटीआई आवेदन दायर किया था।

ऐसे वेंटिलेटर्स को सही नहीं माना जाता है, जो हवा की उतनी मात्रा को फेफड़ों में प्रवाहित नहीं कर पाते हैं, जितनी सांस लेने के लिए आवश्यक होती है।

सिंह ने साल 2020 के बीच में कई आरटीआई आवेदन दायर किए, लेकिन प्रथम अपील के बाद ही उन्हें इसका जवाब मिला। श्रीनगर के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) में एनेस्थिसियोलॉजी और क्रिटिकल केयर विभाग के प्रमुख ने सिंह को भेजे जवाब में उन दावों की पुष्टि की, जो डॉक्टरों ने उन्हें बताया था।

श्रीनगर के अस्पताल को भारत वेंटिलेटर्स से 37 यूनिट, ज्योति सीएनसी ऑटोमेशन लिमिटेड से 125 यूनिट और एजीवीए (AgVa) वेंटिलेटर्स से तीन यूनिट वेंटिलेटर प्राप्त हुए थे, जिसमें से सभी खराब निकले थे।

मालूम हो कि ज्योति सीएनसी को 5000 वेंटिलेटर्स देने के लिए पीएम केयर्स फंड से 121 करोड़ रुपये मिले थे। इसी तरह एजीवीए कंपनी को प्रति वेंटलेटर देने के लिए 1।8 लाख रुपये मिले थे। वहीं, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड द्वारा निर्मित भारत वेंटिलेटर्स को 30,000 वेंटिलेटर देने के लिए पीएम केयर्स फंड से 1,513।92 करोड़ रुपये मिले थे।

इस आधार पर आकलन करें, तो खराब निकले कुल 165 वेंटिलेटर्स की कीमत 304।4 करोड़ रुपये होती है। दूसरे शब्दों में, पीएम केयर्स फंड का इतना पैसा जनता के किसी काम नहीं आया।

गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के एनेस्थिसियोलॉजी विभाग को एसएमएचएस अस्पताल से 37 वेंटिलेटर्स मिले थे, लेकिन जब विभाग ने इसकी जांच की तो इसमें से सभी खराब निकले। इसके कारण उन्होंने वापस एसएमएचएस अस्पताल को मशीनें लौटा दीं।

मालूम हो कि ज्योति सीएनसी और एजीवीए कंपनी के वेंटिलेटर्स काफी विवादों में रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने गुजरात की ज्योति सीएनसी ऑटोमेशन कंपनी को कोविड-19 उपचार के लिए वेंटिलेटर पहुंचाने की मंजूरी नहीं दी थी।

पिछले साल मई महीने में ज्योति सीएमसी ऑटोमेशन के ‘धमन-1’ वेंटिलेटर्स उस समय विवादों में आ गए जब अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के अधीक्षक जेवी मोदी ने राज्य सरकार के चिकित्सा सेवा प्रदाता को पत्र लिखकर बताया कि ये वेंटिलेटर्स ‘वांछित परिणाम लाने में सक्षम नहीं थे।’

द वायर  ने उस समय अपने एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में बताया था कि गुजरात सरकार द्वारा जिस कंपनी (ज्योति सीएमसी ऑटोमेशन) ने ‘दस दिनों’ में कोविड मरीजों के लिए वेंटिलेटर्स बनाने का दावा किया गया था, जिन्हें लेकर राज्य के डॉक्टरों में मानकों पर खरा न उतरने की बात कही थी, उस कंपनी के प्रमोटर्स उसी उद्योगपति परिवार से जुड़े हैं, जिन्होंने साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनका नाम लिखा सूट तोहफे में दिया था।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि वेंटिलेटर बनाने वाली इस कंपनी के प्रमोटर भाजपा के नेताओं के करीबी हैं।

वहीं, एजीवीए एक ऐसी कंपनी थी, जिसने पहले कभी कोई वेंटिलेटर नहीं बनाया था, लेकिन इसके बावजूद उसे पीएम केयर्स द्वारा 10,000 वेंटिलेटर्स सप्लाई करने का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था। स्वास्थ्य मंत्रालय की तकनीकी समिति द्वारा इसके वेंटिलेटर्स का आकलन करने के पहले ही ऐसा किया गया था।

ये पहला मौका नहीं है जब इस तरह का मामला सामने आया है। इससे पहले मई 2021 में औरंगाबाद मेडिकल कॉलेज ने कहा था कि ज्योति सीएनसी की 150 धमन III वेंटिलेटर्स में से 58 खराब निकले थे।

इसी तरह जून 2021 में न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट कर बताया था कि पीएम केयर्स फंड के 5,500 वेंटिलेटर स्वास्थ्य मंत्रालय के वेयरहाउस में धूल खा रहे हैं।

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