मीलॉर्ड, कप्‍पन पर एक नजर : यूपी सरकार की हिरासत में जंजीरों से खाट पर बंधे पत्रकार की व्‍यथा

:: न्‍यूज मेल डेस्‍क ::

हाथरस घटना प्रसंग: यूपी पुलिस की हिरासत में कोरोना-ग्रस्‍त पत्रकार कप्‍पन जानवरों की तरह खाट से बंधे हैं, रिहाई के लिए पत्‍नी ने सीजेआई को लिखा पत्र :- उत्‍तर प्रदेश के हाथरस की घटना तो आपको याद होगी। उस घटना पर देश भर में बवाल मचा था। युपी पुलिस और प्रशासन की थू-थू हुई थी। उसी दौरान एक स्‍वतंत्र पत्रकार सिद्दीक कप्पन को यूपी पुलिस ने सामाजिक रूप से अशांति फैलाने की कथित साजिश रचने के आरोप में 05 अक्‍टूबर को गिरफ्तार कर मथुरा जेल में बंद कर दिया था। आज जेल में कप्‍पन की हालत बेहद खराब है। उसकी पत्‍नी ने नवनियुक्‍त सीजेआई (चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया) एन वी रमना को पत्र लिखकर न्‍याय की दुहाई देते हुए कप्‍पन पर मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की गुहार लगायी है। जाने माने ऐडवोकेट विल्‍स मैथ्‍यूज के माध्‍यम से भेजे गए उस पत्र में कप्‍पन की पत्‍नी रिहाथ कप्‍पन ने बताया है कि कोरोना पोजिटिव हो जाने के बाद सिद्दीक को मथुरा मेडिकल कॉलेज अस्‍पताल में जानवरों की तरह एक खाट से जंजीर में बांध कर रखा गया है। चार दिनों से वह भोजन नहीं ले पा रहे हैं। शौचालय गये हुए चार दिन हो गये। यह जानकारी लाइवलॉ नामक वेबसाइट से हासिल हुई है। 

पत्‍नी रिहाथ के पत्र से पता चलता है कि सिद्दीक की रिहाई के लिए हेबियस कॉर्पस (बन्दी प्रत्यक्षीकरण कानून) की याचिका 06 अक्‍टूबर 2020 को दायर की गई थी, जिसे नियमत: 09 मार्च 2021 तक निपटाया जाना था। सात बार से अधिक सूचीबद्ध होने के बावजूद उसे निपटाया नहीं गया है। सिद्दीक की पत्‍नी ने प्रार्थना की है कि याचिका के निस्‍तारण तक कप्‍पन को तत्‍काल मथुरा जेल में रखने की इजाजत देते हुए उसके साथ मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाए।
उनकी पत्नी ने पत्र में यह कहा है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बारे में जानकारी होने के बावजूद, उन्हें सीधे मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि Habeas Corpus याचिका से उत्पन्न होने वाला मुद्दा 6 महीने से अधिक समय से लंबित है, इसलिए उन्‍हें सीधे देश के मुख्‍य न्‍यायाधीश को पत्र लिखने को मजबूर होना पड़ा, क्‍योंकि Habeas Corpus याचिका से उत्‍पन्‍न होनेवाला मुद्दा 6 महीने से अधिक समय से लंबित है। 

पत्र में पत्रकारित की दुहाई देते हुए कहा गया है- 'मीडिया लोकतंत्र की सांस है, और यह एक मीडियाकर्मी को सांस देने की कोशिश है, जो पिछले 6 महीने से अधिक समय से जेल में है, और उसकि हेबियस कॉर्पस याचिका भी 06.10.2020 से लंबित है। जेल को दिया गया रिप्रेजेन्‍टेशन आवेदन भी जेल अधीक्षक, मथुरा के समक्ष लंबित हैं।'

इधर, केरल यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ( KUWJ) ने भी सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि सिद्दीक कप्पन को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ( एम्स) या सफदरजंग अस्पताल, दिल्ली में स्थानांतरित किया जाए। जर्नलिस्‍ट यूनियन ने बताया है कि 20 अप्रैल 2021 को कप्पन बाथरूम में गिर गया जिससे गंभीर चोटें आईं और बाद में उसका COVID -19 टेस्ट भी पॉजिटिव निकला। वर्तमान में वो मथुरा के एक अस्पताल में भर्ती है। यूनियन ने कप्‍पन की गिरफ्तारी और हिरासत को अवैध व असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में वह बंदी प्रत्‍यक्षीकरण याचिका दायर की थी। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के साथ कप्पन के संबंधों को नकारते हुए एक अतिरिक्त हलफनामा दायर किया। केयूडब्लूजे ने कहा कि एक पत्रकार के रूप में कप्पन की समाज में मजबूत जड़ें हैं, और शायद वे पीएफआई सहित सभी क्षेत्रों के लोगों के संपर्क में आए हैं, और इसका मतलब यह नहीं है कि वह एक अपराधी है। किसी भी मामले में, पीएफआई एक प्रतिबंधित संगठन नहीं है, जैसा कि कहा गया है। केयूडब्ल्यूजे ने इस बात से इनकार किया है कि कप्पन का पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के साथ कोई संबंध है। इस संबंध में, केयूडब्लूजे ने कहा कि यूपी सरकार ने दो हलफनामों में असंगत रुख अपनाया है। इस महीने की शुरुआत में, 8 लोगों को कथित रूप से पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से जोड़ा गया था, जिसमें इसके छात्रों के विंग लीडर केए रऊफ शेरिफ और केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को शामिल किया गया था और उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने एक अदालत में देशद्रोह, अपराधी साजिश, आतंकी गतिविधियों की फंडिंग और अन्य अपराध पर चार्जशीट दाखिल की है।
------------------
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्सः भारत की रैंकिंग में सुधार, अब भी पत्रकारों के लिए सुरक्षित नहीं
इंटरनेशनल जर्नलिज्‍म नामक नॉन प्रॉफिट ऑरगानाइजेश की ओर से प्रकाशित वर्ल्‍ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2021 में  भारत की रैंकिंग नीचे नहीं गिरी है, लेकिन भारत को अब भी पत्रकारिता के लिहाज से सुरक्षित देश नहीं माना गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत विश्व के सबसे अधिक खतरनाक देशों में है, जहां पत्रकारों को अपना काम सुविधाजनक तरीके से करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

मंगलवार को जारी नवीनतम सूचकांक में 180 देशों में सबसे ऊपर नॉर्वे है। इसके बाद फिनलैंड और डेनमार्क हैं। जबकि सबसे नीचे इरिट्रिया है। चीन 177 वें स्थान पर है। भारत पिछले साल की तरह ही 142 वें स्थान पर है। 2016 में 133 के बाद से यह लगातार नीचे खिसक रहा है। दक्षिण एशियाई देशों में पड़ोसी नेपाल 106, श्रीलंका 127, म्यांमार (तख्तापलट से पहले) 140, पाकिस्तान 145 और बांग्लादेश 152वें स्थान पर हैं।

मंगलवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ब्राजील, मैक्सिको और रूस के साथ “खराब” श्रेणी में है। नवीनतम रिपोर्ट में भारत के किसी भी आलोचना करने वाले पत्रकार के लिए भाजपा समर्थकों द्वारा बनाए गए डराने-धमकाने के माहौल को जिम्मेदार ठहराया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे रिपोर्टर को “राज्य-विरोधी” या “राष्ट्र-विरोधी” के रूप में चिह्नित किया जाता है।

इसमें कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी “मीडिया पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है।”  रिपोर्ट में कहा गया है कि, “2020 में अपने काम के दौरान चार पत्रकार मारे गए। ऐसे में भारत पत्रकारों के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से बन गया है, जहां अपना काम ठीक से कर पाना बहुत कठिन है।”

पत्रकारों को “हर तरह के हमले का सामना करना पड़ता है, जिसमें पुलिस हिंसा, राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा घात लगाना, और आपराधिक समूहों या भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों द्वारा उकसाए गए विद्रोह शामिल हैं” 2019 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी की भारी जीत के बाद मीडिया पर हिंदू राष्ट्रवादी सरकारों की लाइन पर चलने के लिए दबाव बढ़ गया है।”

Add new comment