मीडिया और हाई कोर्ट, दोनों को ‘लोकतंत्र के महत्त्वपूर्ण स्तंभ’ - सुप्रीम कोर्ट

:: न्‍यूज मेल डेस्‍क ::

दुनियाभर में हर साल तीन मई को विश्व प्रेस आजादी दिवस (World Press Freedom Day) मनाया जाता है. इस दिन ये बताया जाता है कि मीडिया का समाज में कितना अहम रोल है. मीडिया की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है. लोकतंत्र को और भी ज्यादा मजबूत करने के लिए भी वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे सेलिब्रेट किया जाता है.

आज वर्ल्‍ड प्रेस फ्रीडम डे है। इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट से आ रही यह खबर शायद काफी प्रासंगिक है। वैसे, मामला पिछले दिनों मद्रास हाई कोर्ट की एक टिप्‍पणी से शुरू हुआ था। उसके बाद आज वही मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। और सुप्रीम कोर्ट में जो कुछ हुआ जाहिर है भारत में प्रेस की स्‍वतंत्रता को बल देगी। ऐसा मेरा मानना है।

अब बात करते हैं सुप्रीम कोर्ट की उस कार्रवाई की। जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कोविड-19 के मामले बढ़ने के लिए निर्वाचन आयोग के अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराने और उन पर हत्या के आरोपों में मुकदमा चलाने जैसी मद्रास उच्च न्यायालय की टिप्पणियों के खिलाफ दायर निर्वाचन आयोग की याचिका पर कई महत्‍वपूर्ण टिप्‍पणी के साथ ही अपना अंतिम फैसला सुरक्षित रख लिया है। आज के हालात को देखें तो इस प्रसंग में सुप्रीम कोर्ट की टिप्‍पणियां काफी महत्‍वपूर्ण हैं।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्‍पणी से पहला महत्‍वपूर्ण संदेश तो यह सामने आता है कि आज अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता कितनी प्रासंगिक है। आपको याद होगा कि पिछले दिनों मद्रास हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए भारत के चुनाव आयोग के अधिकारियों के खिलाफ जबरदस्‍त टिप्‍पणी की थी। यह हालिया उन दिनों की बात है जब पश्चिम बंगाल में चुनाव अपने सुरूर पर था। देश भर में कोरोना के बढ़ते कहर के उलट बंगाल में हजारों लाखों की भीड़ वाली रैलियां बेखौफ आयोजित की जा रही थीं। स्‍वयं प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उस भीड़ को देख अघा रहे थे। दूसरा मामला था कुंभ आयोजन का। बाजाप्‍ता फुल-फुल पेज का सरकारी विज्ञापन देश भर के अखबारों में छापकर लोगों को कुंभ के लिये जमा होने को उकसाया गया। मुख्‍यत: इन्‍हीं दो वाकयों के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयोग के दोषी अधिकारियों पर क्‍यों नहीं हत्‍या का मुकदमा दायर होना चाहिए। जाहिर है, यह गंभीर टिप्‍पणी थी जो उन वाकयों की गंभीरता की ओर इशारा कर रही थी। लेकिन चुनाव आयोग उन टिप्‍पणियों से असहज हो गया। आयोग की ओर से उन टिप्‍पणियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस शाह की पीठ ने उसी याचिका पर सुनवाई के दौरान आज यह महत्‍वपूर्ण टिप्‍पणी की है। पीठ ने कहा कि मौखिक टिप्पणियों पर जनहित में रिपोर्ट करने से न तो वह मीडिया को रोक सकता है और न ही सवाल न पूछे यह कहकर उच्च न्यायालयों का मनोबल गिरा सकता है.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि ‘निर्वाचन आयोग अनुभवी संवैधानिक निकाय है जिसके पास देश में मुक्त एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है. इसे टिप्पणियों से परेशान नहीं होना चाहिए.’ साथ ही पीठ ने कहा कि ‘हम आज के समय में यह नहीं कह सकते कि मीडिया अदालत में होने वाली चर्चाओं पर रिपोर्टिंग न करे, क्योंकि यह भी जनहित में है. अदालत में होने वाली चर्चाएं आदेश जितनी ही महत्त्वपूर्ण होती हैं. इसलिए, अदालत में कोई भी प्रक्रिया होना जनहित में है.’ गौरतलब है कि मद्रास हाईकोर्ट ने 26 अप्रैल को निर्वाचन आयोग की तीखी आलोचना करते हुए उसे देश में कोविड-19 की दूसरी लहर के लिए ‘अकेले’ जिम्मेदार करार दिया था और कहा था कि वह ‘सबसे गैर जिम्मेदार संस्था’ है. इसी कटाक्ष के बाद आयोग ने कहा था कि कोविड दिशानिर्देशों का पालन करवाने की जिम्मेदारी उसकी नहीं बल्कि सरकारों की है. इसके बाद 30 अप्रैल को आयोग ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि कोविड-19 महामारी के बीच चुनाव कराने को लेकर उसकी भूमिका पर न्यायाधीशों की मौखिक टिप्पणी को मीडिया में रिपोर्टिंग करने से रोका जाए.

लाइव लॉ वेबसाइट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह ने कहा, ‘इस टिप्पणी के बाद आपके फैसलों ने प्रणाली में सुधार किया. आप मतगणना में जो हुआ उसे देखें. आप इसे सही अर्थों में लें… एक कड़वी गोली की तरह.’

पीठ ने कहा, ‘कुछ टिप्पणियां बड़े जनहित में की जाती हैं. कभी ये गुस्से में की जाती हैं और कई बार यह इसलिए की जाती हैं कि व्यक्ति उस काम को करे जो उसे करना चाहिए… कुछ न्यायाधीश कम बोलते हैं और कुछ न्यायाधीश बहुत ज्यादा.’

पीठ ने  कहा, ‘उच्च न्यायालय सवाल न पूछें, यह कहकर हम उनका मनोबल नहीं गिरा सकते क्योंकि वे लोकतंत्र का महत्त्वपूर्ण स्तंभ हैं. संवाद मुक्त रूप से होना चाहिए. बार और बेंच के बीच मुक्त संवाद में अक्सर कुछ बातें कह दी जाती हैं.’

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि वह जो कह रहे हैं वह आयोग को कमतर बताने वाला नहीं है और इसे उस संदर्भ में नहीं लिया जाना चाहिए.’ उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र तभी जीवित रहता है जब उसके संस्थानों को मजबूत किया जाता है.’ साथ ही उन्होंने  कहा, ‘हमें प्रक्रिया की न्यायिक शुद्धता को बचाना होता है. हमें सुनिश्चित करना होता है कि न्यायाधीश अपने विचार रखने के लिए पर्याप्त स्वतंत्र हों. हमें सुनिश्चित करना होता है कि अदालत में होने वाली हर बात को मीडिया रिपोर्ट करे ताकि न्यायाधीश गरिमा से अदालती कार्यवाही करें.’

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